गुरु गोबिंद सिंह जी के महत्वपूर्ण उपदेश
Guru Gobind Singh ji ke updesh
गुरु गोबिंद सिंह जी |
’’करतार की सौगन्ध व नानक की कसम है,
जितनी भी तारीफ़ हो गोबिन्द सिंह की वो कम है ।’’
दशम पिता का आदर्श इतना सर्वोच्च था कि उन्होंने अपनी संसारिक यात्रा के दौरान ऐसे बेमिसाल कार्य किए, जिससे किसी भी तरह का अंदेशा ही नहीं रह पाता उन्होंने सदैव समूचे जगत के उद्धार के लिए भरसक प्रयत्न किए हैं, जिसका प्रमाण बचित्र नाटक में भी मिलता है -
’’धरम चलावन संत उबारन ।
दुष्ट सभन को मूल उधारन ।।’’ ४३ (बचित्र नाटक, अध्याय-९)
कर्मकांडों का त्याग : Renunciation of rituals
उन्होंने गुरु नानक देव जी द्वारा मनुष्यता को जिस प्रकार से कर्म_कांडों से दूर रहने का उपदेश दिया उसी का अनुसरण करते हुए गुरु जी ने मनुष्य को एकता, बराबरता और सद्भावना के साथ जीवन जीने की प्रेरणा दी जहां श्री गुरु नानक देव जी की सारी सृजना आरम्भिक व बुनियादी थी वहीं दशम पिता की सृजना ने उन बुनियादी नीवों को सुदृढ़ बनाकर उन्हें सम्पूर्णता प्रदान की है उन्होंने ’बचित्र नाटक’ में इस बात का जिक्र स्वयं किया है कि ’अकाल पुरुख ने उन्हें अपना पुत्र बनाकर इस मातृभूमि में समूची मानवता को मज़हबों, जाति-पाति, फोकट के कर्म-कांड के झगड़ों से बाहर निकाल कर सिर्फ सच्चे धर्म के सही रास्ते पर चलाने के लिए भेजा है -
’’मैं अपना सुत तोहि निवाजा ।
पंथ प्रचूर करने कहु साजा ।।
जहां वहां तै धर्म चलाए ।
सबुद्ध करन वे लोक हटाए ।।’’
गुरु जी ने अंध फोकट कर्मकांडी क्रियाओं जैसे मूर्ति पूजा, व्रत, जप, तप, तीर्थ यात्रा, आदि का
डट कर विरोध किया है । उनके अनुसार यह कर्म कांड न तो मुक्ति का साधन है और न ही प्रभु-प्राप्ति का सहायक तत्व है इसको नकारते हुए उन्होंने प्रभु की सच्ची भक्ति पर बल दिया |
’कहा भयो जो दोऊ लोचन मूंद के,
बैठ रहियो बक ध्यान लगायो,
नाहत फिरियो लिए सात समुन्द्रन,
लोक गयो परलोक गवाययो,
बास कियो बिखियान सो बैठ के,
ऐसे ही ऐसे सो बैस बिताययो ।
साच कहौं सुन लेहु सबै,
जिन प्रेम कियो तिन ही प्रभ पायो ।।’’ (अकाल उस्तुति)
प्रभु का गुणगान : Lord churning
गुरु जी द्वारा सच्चे धर्म पर चलने वाले उपदेशों में सर्वप्रथम प्रभु के अलग_अलग गुणों का गायन करना और उसके द्वारा दिए गए अमूल्य जीवन के लिए पुनः_ पुनः धन्यवाद करना चाहिए प्रभु की सर्वज्ञता व उच्चता और उसके सामने मनुष्य की इस तुच्छ हस्ती का बखान करके जिज्ञासु मन को प्रभु चरणों में लीन करना इनकी वाणी का एक करामाती गुण है गुरु जी द्वारा
रचित वाणी ’जापु साहिब इस बात की पुष्टि भी करती है कि प्रभु का कोई चक्र, चिह्न, रूप, रंग,
रेख, भेख नहीं है वह अपने आप से पैदा हुआ है और अथाह शक्ति का मालिक है, सदैव उसके
गुणों की स्तुति करनी चाहिए ।
रचित वाणी ’जापु साहिब इस बात की पुष्टि भी करती है कि प्रभु का कोई चक्र, चिह्न, रूप, रंग,
रेख, भेख नहीं है वह अपने आप से पैदा हुआ है और अथाह शक्ति का मालिक है, सदैव उसके
गुणों की स्तुति करनी चाहिए ।
अवतारवाद का खंडन : Contradiction of avatarism
अवतारवाद को नकारते हुए गुरु जी इस बात पर अधिक बल देते हैं कि प्रभु जन्म मरण से रहित है इसलिए उसे अवतार में ढूंढना मूर्खता है प्रभु अतीत, वर्तमान और भविष्य में सदा ही कायम रहने वाला है ब्रह्मा, विष्णु, महेश, इन्द्र, वामन अवतार, शिव आदि सब उस प्रभु का अन्त पाने में असमर्थ रहे हैं । इसलिए उस निराकार शक्ति को हमेशा नमस्कार करना चाहिए । गुरु जी का उद्देश्य मानव जाति को संकीर्णताओं से मुक्त करवाना था, जो चिरकाल से ही परम्पराओं का हिस्सा बनी हुई थीं गुरु जी ने प्रभु को अकाल कह कर उसे काल में उत्पन्न होने वाले सारे स्थापित धर्मों, अवतारों, सम्प्रदायों, विश्वासों से उच्च कर दिया ।
समानता का उपदेश : Gospel of equality
उन्हांने सारी मानवता को प्रभु की संतान स्वीकार करते हुए कहा है कि भिन्न_भिन्न धर्मों, देशों, प्रान्तों, इलाकों और बाहरी विभिन्नताओं के होते हुए भी हम सब भाई_भाई हैं वो हमारा पिता है और हम सब उस प्रभु के बालक हैं इसी तरह प्रभु के अनेक नाम रखने से उसकी एकता का असूल भंग नहीं हो सकता जैसे प्रभु एक हैं किन्तु सबमें समाया हुआ है इसीप्रकार मनुष्य जाति भी एक इकाई है इसलिए हमें एक दूसरे से बैर विरोध न करके एकता के साथ रहना चाहिए ।
धार्मिक निष्ठा : Religious belief
धर्म के प्रति निष्ठा, उनकी ओर से उठाये गये हर कदम का स्वभाव क्रान्तिकारी था । उनके सामने सच्चे व्यक्तियों की रक्षा और जुल्म का नाश करने वाला एक मिशन था । इस मिशन को पूर्ण करने के लिए उन्होंने अपने सिक्खों को सच्चे संत सिपाही बनाया, इनके सिक्ख ऐसे संत हैं, जो जीवन में आने वाले कष्टों को, विकारों को अपने बाहूबल और सुझबूझता के साथ लड़ते नज़र आते हैं ।
अन्याय के विरोधी : Opponents of injustice
श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी ने आनन्दपुर साहिब को जहाँ आध्यात्मिक व शिक्षण का केन्द्र बनाया वहीं युद्ध व शस्त्र कला सीखने वाला धुर भी स्थापित किया जहां आप स्वयं उम्र भर जाति अभिमानी, कट्टर पंथियों और ताकत के नशे में चूर अंधी मुगल सलतनत के साथ जंग करते रहे वहां आपका सम्पूर्ण परिवार भी इसी अंधी सलतनत के जुल्मों का डट कर सामना करते हुए वीरगति को प्राप्त हुआ शक्ति के प्रयोग के बारे में गुरु जी ने ’ज़फरनामें’ में स्पष्ट कहा है कि जब कोई कार्य, सारे दांव-पेंच, उपाय नष्ट व बेकार हो जाएं तब हाथ में तलवार उठा लेनी जायज़ है -
’’चुंकार अज हमह हीलते दरगुज़स्त ।।
हलाल असत बुरदन बशमशीर दस्त ।।’’
साधारण जीवन जीने की प्रेरणा : Inspiration to live a simple life
गुरु साहिब मानवीय एकता के लिए सदैव ही तत्पर रहे हैं जिससे स्पष्ट है कि उन्होंने गल्त धारणाओं, अंधविश्वासों से रहित होकर गुरमति के सिद्धातों के अनुरूप जीवन जीने का आदेश दिया, जिससे मनुष्य लोक-परलोक दोनों पर जीत प्राप्त कर सके । इस विजय की प्राप्ति के लिए उन्होंने लोगों को शारीरिक तंदरुस्ती के लिए भी प्रेरित किया और इसके लिए जीवन जांच के कुछ असूल भी निर्धारित किए जैसे थोड़ा खाना, थोड़ा सोना, दया, क्षमा धारण करना, शील, संयम, संतोष के धारणी बन कर रजो, तमो, सतो, तीनों गुणों से निर्लिप्त रहकर इस माटी के समान तन को कंचन के समान बनाया जा सकता है ।
’’अल्प आहार सुल्प सी निद्रा, दया, क्ष्मा, तन प्रीत ।
सील संतोष सदा निरवाहिबो ह्वैवो, त्रिगुण अतीति ।।’’
(श्री दशम ग्रन्थ-पन्ना-७॰९)
इस प्रकार गुरु जी के उपदेश हमेशा मानव जाति का मार्गदर्शन करते रहेंगे उनके द्वारा दिया गया ज्ञान प्रभु प्राप्ति का सहायक तत्त्व साबित होगा उन्होंने विद्या और ज्ञान की महिमा का वर्णन करते हुए कहा है कि जब तन को धैर्य और संयम का गृह बनाकर बुद्धि रूपी दिया जलेगा तब मन पवित्र हो जाएगा और सदैव प्रभु चरणों में जुटकर उसी में ही रम जाएगा ।
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